यह कैसा विकास चारों और उगी है केवल गाजर घास गाजर घास।
चेहरे मुरझाए मुर्दाने सभी उदास सभी उदास ( पंकज भी है यहां उधास) नहीं पता है कौन दूर है और कौन है पास वातानुकूलित कमरों में कवि गाते असंपृक्त संत्रास रोना आता है सुन सुनकर उनका हास और परिहास।
छुट्टी में बच्चे गाते हैं या तो फिल्मों की बकवास या कि खेलते ताश।
सूख गए सारे पलाश अब शब्दकोश में है मधुमास कालिदास के मधुर समास सब ‘खल्लास' सन 50 के अनुप्रास सब खाली बोतल और गिलास चारों ओर दिखा देती गाजर घास गाजर घास।
प्रभाकर माचवे [धर्मयुग, दिसंबर, 1992 ]
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